Book Title: agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti

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Page 12
________________ तेने शब्दशः अनुसरी ते ऊपर संगतवार भाष्य रचवानुं प्रधान कार्य एमणे कर्यु हतुं । ए भाष्यमां आम्नायथी विरुद्ध जनारा दरेक पक्ष ऊपर एमणे यथेष्ट आक्षेप-प्रतिक्षेप कर्या छे अने खसंप्रदायर्नु समर्थन कर्यु छे । ए पोताना समर्थनमा तर्कनो उपयोग करे छे पण ते तर्क आम्नायानुकूल होय तो ज तेने महत्त्व आपे छे । आम्नायथी आगळ जनार तर्कने ए उपेक्षणीय गणे छ । ___ उदाहरण तरीके एक प्रसंग लईए-सिद्धसेन दिवाकर जिनभद्रना पुरोगामी आचार्य छ । जैनवाङ्मयमां अने इतिहासमा तेमनुं स्थान घj ऊंचुं छे । जैनधर्मना जे महान् समर्थक अने प्रभावक आचार्यों थई गया छे तेमां सिद्धसेनसूरि घणा आगळ पडता छ । सम्मतितर्क, न्यायावतार, महावीरस्तुति विगेरे मौलिक-सिद्धान्त-प्रतिपादक अने प्रौढविचार-पूर्ण एमना ग्रन्थो छ । जैन तर्कशास्त्रना ए व्यवस्थापक अने विवेचक छे । एथी ए तर्कप्रधान आचार्य मनाय छे । जैनदर्शनना ए एक अनन्य आधारभूत आप्त पुरुष छ । एमना पाछळना सर्व समर्थ आचार्यो ए एमने आप्तरूपे खीकार्या छे । ए आचार्ये पोताना सम्मतितर्क नामना तात्त्विकग्रन्थमां, केवलज्ञान अने केवलदर्शनना खरूपनो विचार करतां, ए सिद्धांत प्रतिपादित कर्यो छे के केवलज्ञानीने ज्ञान अने दर्शन बन्ने युगपत् ज होई शके छ; अने तेथी यथार्थमा बन्ने एक खरूप ज छ । आगमोमां जे "जुगवं दो णत्थि उवओगा" ए विचार प्रतिपादेलो छे तेनाथी सिद्धसेननो सिद्धान्त जराक विरुद्ध देखाय छे । एटले आगमवादी जिनभद्र गणी क्षमाश्रमणे पोताना भाष्यमां सिद्धसेनना विचारनो विगतवार प्रतिक्षेप कर्यो छे अने तात्पर्यमां जणाव्युं छे के तर्कथी गमे ते विचार सिद्ध थतो होय पण आगमथी बहार जता तर्कनो खीकार न करी शकाय । आगममां क्याए पण युगपदुपयोग, सूचन नथी अने तेथी ए विचार अग्राह्य छे । आ विषयनो उपसंहार करतां जिनभद्र गणी क्षमाश्रमण जणावे छे के कस्स व नाणुमयमिणं जिणस्स जइ हुज दोवि उवओगा। नूणं न हुंति जुवगं जओ निसिद्धा सुए बहुसो ॥ न वि अभिनिवेसबुद्धी अम्हं एगंतरोवओगम्मि । तह वि भणिमो न तीरइ जं जिणमयमनहा काउं॥ (विशेषावश्यकभाष्य, पृष्ठ १२१३) अर्थात्-जो जिनने-केवलीने युगपद् बन्ने उपयोग होत तो ते कोईने अनभिमत न थात । पण ते छ ज नहीं; कारण के सूत्रमा तेनो घणी जग्याए निषेध करवामां आवेलो छ । तेम ज क्रमोपयोगमां-एक पछी एक थनार ज्ञानमां-अमारी कांई अभिनिवेशबुद्धी नथी। पण तथापि कहीए छीए के जिनना मतने अर्थात् आगमनी परंपराने अन्यथा न ज करी शकाय । ___ आम जिनभद्रगणी आगमपरंपराना महान् संरक्षक हता अने तेथी तेओ आगमवादी के सिद्धान्तवादी ना बिरुदथी जैन वाङ्मयमां ओळखाय छे ।। जिनभद्रगणीनी ग्रन्थकृतिओ जिनभद्रगणीना बनावेला ग्रन्थोनी चोकस माहिती कांई मळती नथी । सामान्य रीते नीचे जणावेला पांच ग्रन्थो तेमनी कृति तरीके सुप्रसिद्ध छ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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