Book Title: agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
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१०. एघा, परसमयना सिद्धान्तोमा निपुण, संयमशील श्रमणोना मार्गना अनुगामी, अने क्षमाश्रमणोमां निधानभूत जिनभद्र गणी क्षमाश्रमणने नमस्कार।
आमांना ५ मा पद्यना तात्पर्थार्थ ऊपरथी ए जणाय छे के-जिनभद्र गणी आगमोना अद्वितीय व्याख्याता हता; युगप्रधान पदना धारक हता; तत्कालीन प्रधान प्रधान श्रुतधरो पण एमने बहु मानता हता; श्रुति अने अन्य शास्त्रोना पण ए कुशल विद्वान् हता; अने जैन सिद्धांतोमा जे ज्ञान-दर्शनरूप उपयोगनो विचार करवामां आव्यो छे तेना ए समर्थक हता। ६ट्ठा पद्यना तात्पर्यथी ए जणाय छे के एमनी सेवामां घणा मुनियो ज्ञानाभ्यास करवा माटे सदा उपस्थित रहेता हता । ७ मा पद्यमां, जुदा जुदा दर्शनोनां शास्त्रो; तथा, लीपि विद्या, गणित शास्त्र, छन्द शास्त्र, अने शब्द ( व्याकरण ) शास्त्र आदिमां एमर्नु अनुपम पांडित्य सूचित कर्यु छ । ८ मा पद्यमां विशेषावश्यकभाष्य; अने ९ मामां, जीतकल्पसूत्र विषयक एमनुं कर्तृत्व प्रकट कर्यु छे । १० मा पद्यमां, एमनी परसमयना आगम विषेनी निपुणता, खाचारपालननी प्रवणता, अने सर्व जैन श्रमणोमा रहेली मुख्यतानुं सूचन कर्यु छ ।
आटला संक्षिप्त परिचय सिवाय अन्यत्र क्याए पण ए महान् आचार्यनो कशो पण विशेष उल्लेख दृष्टिगोचर थतो नथी। ___ हरिभद्रसूरि, शीलांकाचार्य, जिनेश्वरसूरि, अभयदेवसूरि, हेमचंद्रसूरि, वादीदेवसूरि, मलय. गिरि अने देवेन्द्रसूरि विगेरे पाछळना प्रसिद्ध प्रन्थकारो अने टीकाकारोए एमनो नामनिर्देश पोतानी कृतिओमां अनेकशः करेलो छ । “भाष्यसुधाम्भोधि; भाष्यपीयूषपाथोधि: भगवान् भाष्यकार; दुष्षमान्धकारनिमनजिनवचनप्रदीपप्रतिमः दलितकुवादिप्रवाद; प्रशसभाव्यसस्यकाश्यपीकल्प; त्रिभुवनजनप्रथितप्रवचनोपनिषद्वेदी; सन्देहसन्दोहशैलशंगभंगदम्भोलि" इत्यादि प्रकारनां विशिष्ट विशेषणोपूर्वक एम, नामस्मरण करवामां आव्युं छे; अने ए रीते एमनी आप्ततानो गौरवपूर्वक स्वीकार करवामां आव्यो छे ।
दरेक संप्रदायमा विद्वानोना बे प्रकार नजरे पडे छः एक तो आगमप्रधान; अने बीजो तर्कप्रधान । आगमप्रधान पंडितो हमेशां पोताना परंपरागत आगमोने-सिद्धान्तोने शब्दशः पुष्टरीते पकडी रहेवाना स्वभाववाळा होय छे; त्यारे तर्कप्रधान विद्वानो आगमगत पदार्थव्यवस्थाने तर्कसंगत अने रहस्यानुकूल मानवानी वृत्तिवाळा होय छे । आथी केटलीक वखते आगमप्रधान अने तर्कप्रधान विचारकोनी संप्रदायगत तत्त्वविवेचननी पद्धतिमा विचारभेद पड़े छे । ए विचारभेद जो उग्र प्रकारनो होय छे तो कालक्रमे संप्रदाय-भेदना अवतारमा अवसान पामे छ; अने सौम्य प्रकारनो होय छे तो ते मात्र मतभेदना रूपमा ज विरमी जाय छे । जैन संप्रदायना इतिहासमुं अवलोकन करतां तेमां आवा अनेक विचारभेदो, मतमेदो अने संप्रदायभेदो अने तेनां मूलभूत उक्त प्रकारनां कारणो बुद्धि आगळ स्पष्ट तरी आवे छे । ए विचारना एक उदाहरणभूत जिनभद्र गणी क्षमाश्रमण पण छे; अने तेथी जैन प्रवचनना इतिहासमा एमने घणी प्रसिद्धि प्राप्त थई छ । जिनभद्रगणी आगम-प्रधान आचार्य छ । जैन आगमानाय जे परंपराथी चाल्यो आवतो हतो
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