Book Title: agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti

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Page 13
________________ १. विशेषावश्यक भाष्य मूळ अने टीका. आ भाष्य बहु प्रसिद्ध अने प्रकाशित छ । आना ऊपर ग्रन्थकारे पोते ज एक संस्कृत टीका लखी हती पण ते अत्यारे दुर्लभ छ । बीजी टीका शीलांकाचार्य जेमर्नु बीजं नाम कोट्याचार्य पण प्रसिद्ध छे तेमणे लखी छे । ए टीकानी ताडपत्र ऊपर लखेली एक अतिजीर्ण प्रति पूनाना राजकीय ग्रन्थसंग्रहमां सुरक्षित छे । त्रीजी टीका मलधारी हेमचंद्रसूरिनी बनावेली छे अने ते प्रकट थई गई छ । २. बृहत्संग्रहणी. आ लगभग ४०० थी ५०० गाथानो ग्रन्थ छ । एना ऊपर मलयगिरि सूरिए संस्कृत टीका लखी छे । ग्रन्थ सटीक प्रसिद्ध थई चुक्यो छे । ३. बृहत्क्षेत्रसमास. आ पण प्राकृत गाथाबद्ध ग्रन्थ छे । आना ऊपर पण मलयगिरि विगेरे आचार्योए टीकाओ लखी छे । ग्रन्थ प्रसिद्ध छे ।। ४. विशेषणवती. लगभग ४०० गाथाओनो बनेलो आ एक प्रकरण ग्रन्थ छे, अने अद्यापि अप्रकाशित छ । ५. जीतकल्पसूत्र. प्रस्तुत ग्रन्थ । आ सिवाय ध्यानशतक नामनो एक ग्रन्थ जे हरिभद्रसूरिनी आवश्यक टीकामां समुद्धृत छे तेना कर्ता पण जिनभद्रगणी कहेवाय छे पण ते सन्दिग्ध छ । जिनभद्रगणीनी भाष्यकार तरीकेनी बहु ख्याति छ। तेमा मुख्यतया तो विशेषावश्यक भाष्य ने लईने ज ए प्रसिद्धि प्राप्त थई होय तेम जणाय छे । कारण के ज्या ज्यां भाष्यकारना नामे एमनो उल्लेख आवे छे त्यां त्यां घणा भागे विशेषावश्यकना अवतरणो टांकवामां आव्यां होय छे । पण, ए भाष्य सिवाय बीजां पण कोई भाष्यो एमणे रच्यां होय तो ते संभवित छ । एनुं काईक अस्पष्ट सूचन, कोट्याचार्यनी विशेषावश्यकभाष्यटीकामांना एक उल्लेखथी थाय छे: 'पोग्गल-मोयगदन्ते' ए पदथी शुरुथती विशेषावश्यकभाष्यनी २३४* मी गाथामां जे दृष्टान्तो सूचव्या छे तेमनुं विवरण आ भाष्यमां करवामां आव्यु नथी । पण निशीथसूत्रना भाष्यनी पीठिकामां आ गाथा अने एमां सूचवेलां दृष्टान्तोनुं विवरण विगतपूर्वक आपेलं छे । एटलामाटे कोट्याचार्य पोतानी टीकामां आ दृष्टांत-सूचक गाथानी व्याख्या करतां विवरणमाटे लखे छे के–'निशीथे वक्ष्यामः'-निशीथमां आ विवरण करीशुं ।' आ वाक्य कोट्याचार्य- होय एम तो संभवे ज नहीं । कारण के निशीथभाष्य कोट्याचार्यकृत छे एवी प्रसिद्धि के परंपरा बिल्कुल संभळाती नथी । तेथी आ वाक्य जिनभद्रगणीनी खोपज्ञटीकामांनुं होवू जोइए। अने जो तेम होय तो ग्रन्थकारे आ गाथार्नु विवरण निशीथ भाष्यमां कयु होय एटले विशेषावश्यकभाष्यमा पुनः ते करवानी आवश्यकता नहीं रहेवाथी अहिं मात्र तेनुं सूचन ज करी दीधुं होय । विशेषावश्यकटीकाकार हेमचंद्रसूरि पण आ गाथानी व्याख्यामां अंते एम लखे छे के-'एतान्युदाहरणानि विशेषतो निशीथादवसेयानि ।' मारी पासे केटलांक प्रकीर्ण पानाओनो एक संग्रह छे तेमां भाष्यो अने चूर्णिओमांनी केटलीक नोंधो कोई विद्वाने करेली छे । * काशीथी प्रकट थएल आवृत्तिमां आ गाथानो क्रमांक २३५ छे, पण पूनानी कोट्याचार्यवाळी टीकानी प्रतिमा ए अंक २३४ छ। 2 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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