Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga

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Page 12
________________ सम्प्रदाय के साधु होते हुए भी आपने अपने प्रखर ज्ञान बल से सबको समान रूपेण देखा। चारित्र बल से लोगों में अभय भरा। अनेक प्रकार के अभूत पूर्व उदाहरण उपस्थित किये, जो कि सबके लिये उपकारी साबित हुए। तपस्या और स्वावलम्बन की साधना से जीवन को खूब कसा । इन सब बातों का स्वरूप आपको काव्य-कला निपुण, साहित्य प्रेमी श्री ऋषभचन्द डागा की विरचित "युगप्रवर श्री विजयवल्लभ सूरि जीवन रेखा और अष्ट प्रकारी पूजा” नामक इस पुस्तिका से मिलेगा। जो कि सरल व सरस हिन्दी भाषा में लिखी गई है । अस्तु । आचार्य श्री ने “जयतीति जिनः” का सिद्धान्त अपने जीवन में आमूल चल उतारा । ये एक “जैन श्वेताम्बर तप गच्छ” नामक सम्प्रदाय में होते हुए भी सम्प्रदायातीत बन गये, यह इनकी विलक्षणता थी। इन्होंने मनुष्य के प्रति तो समदर्शिता दिखाई ही किन्तु साथ में अन्य जीवों के प्रति होने वालीसहिष्णुता को भी नहीं छोड़ा। यह इनके जीवन वृत्तों से भलीभांति मालूम किया जा सकता है । आचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि ने संयम-साधना के साथसाथ ज्ञान के माध्यम से मनुष्य जीवन के प्रत्येक उपयोगी क्षेत्र को ढूंढ निकाला। भारत के विभिन्न भागों में अनेक संस्थाएं चलाये जाने की योजनाएं बनाई, जिसमें इनके श्रावकों का सहयोग तो रहा ही किन्तु दूसरे लोग भी इनकी क्रियाशील प्रतिभा से प्रभावित हो, उन संस्थाओं की मुक्तहस्त हो सेवा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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