Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga
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( ६७ )
प्रश्न उठा इक कौन है ऐसा, मध्यस्थ सरल स्वभावी ।
वल्लभ सा दीखे नहिं कोई,
युग में प्रगट प्रभावी ॥३॥
सौराष्ट्र में ढेबर भाई, काँग्रेस परधान | गुरू वल्लभ का दर्शन करके, पाया जग में मान ||४|| पंजाबी घनश्याम बरड़िया, गुरु का भक्त कहावे । सर्प डंस का जहर उतारा, नव जीवन वो पावे ॥५॥ लाला शांतिलाल पंजाबो, गुरु चरणों का चाकर । संक्रांति चूकण नहिं पावे, चमत्कार को पाकर ||६|| भावनगर काठियावाड़की, विनती मान धरावे । आतम कांति मन्दिर ज्ञान का उद्घाटन कर पावे ||७| कापड़िया परमानन्द भाई, जिज्ञासु बन आवे । वल्लभ सा सच्चा सूरिलख, चरणों बड़ौदा में वाड़ी भाई, स्वागत धूम दर्शन जैन धर्म की महिमा, सद्गुरू जी
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शीश झुकावे ॥८॥
मचावे |
बतलावे ||९||
विजय उमंग सूरीश्वर माने, जब पंजाब को जाना । तिस कारण सद्गुरु से पाते, पट्टधर का सन्माना ॥१०॥
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विक्रमऋद्धि नभ भू कर वर्षे, फागण सुदी शुभ थावे । समुद्र पूर्णानन्द विजयजी, उपाध्याय पद पावे ||११|| - आतम वल्लभ सूरि समुद्र, ऋषभ प्राणाधारी । नैवेद्य पूजत सद्गुरू वर के, आनन्द हर्ष अपारी ||१२||
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