Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga

View full book text
Previous | Next

Page 111
________________ केशरी पंजाब पद शोभित, कल्पतरु कलिकाल राया ।' भट्टारक गुण सुशोभित कर, गुरु युगवीर कहलाया ॥३: हरे दुःख भांति भांति का प्रभावकाचार्य सुखदाया। करूँ वर्णन कहाँ तक मैं, गुणों का पार नहीं पाया ||४|| गुरू समुदाय में दोपे, विजय उमंग सूरि राया। . विजय समुद्र पूर्णानन्द, सूरीश्वर पद को चमकाया ||५|| नेम विकास उदय दर्शन, चन्दन पन्यास कहलाया। रमणीक पन्यास गणि राम, गणि इन्द्र जनक भाया ॥६॥ आगम के सूर्य हैं तपते, विजय पूण्य मुनि राया । सेवा साहित्य की करते, नहिं इन समा कोई पाया ||७H तपे शिव विशुद्ध वल्लभदत्त, सुरेन्द्र प्रकाश मुनिराया । बलवंत जय न्याय विनीत आदि, विजय पद धारी समुदाया || It विबुध सन्तोष मित्र रवि, विचरते साधुगण राया। गुरू का नाम कर रोशन, विजय पद खूब दीपाया ॥९|| प्रवर्तिनी हेम माणक्य, विदुषो आदि साध्वियाँ। धरम उपदेश जग करती, चारित्र बल खूब विकसाया ॥१०॥ होर विजय सूरि रास रचना, इशु वसु रश निशिराया। कवि ऋषभदास श्रावक को, मुनि मण्डल अपनाया ॥११॥ मरुधर देश अति सुन्दर, बीकानेर शहर सुपाया। बोसा ओसवाल डागा गोत्र.पिता मूलचन्द्र गुणी थाया ॥१२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126