Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga
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भाईचन्द त्रिभुवन भाई, गुरु भक्ति कर नार आदीश्वर नेमि जिन की, बोले जय जयकार || फूलचन्द जी खीमचन्द, वल्लाद का कहलाय । गुरु निश्रा में प्रतिष्ठा, जगह जगह कर पाय ।। शासन के सम्राट हैं, गुरू युगवीर कहाय । सामाजिक कल्याण का, चमत्कार बतलाय ।। संघ रक्षक सूरीश्वरा, तीर्थ झगड़िया जाय । गुरुकुल को स्थापित करे, विश्ववत्सल महाराय ॥ सद्गुरू बम्बई आवंता, स्वागत हर्ष बधाय । गोडीजी के ट्रस्टीगण, अगवानी कर पाय ॥ नवयुग निर्माता पुस्तक, गुरु पूरण कर पाय । सौंपा पंडित हँस को, सम्पादन हित दाय । महत्ता श्री मगराज की, श्रद्धा का नहिं पार । गुरु भक्ति में झमता, कवि काव्य कर नार ॥ दर्शन सत्तरी ग्रन्थ में, प्रभावक अधिकार । सो सब गुण धारक गुरू, भट्टारक जयकार ।।
(चाल-गुरू. समरतन अमोलक पायों) शुरू तव पूजन शिव सुखदाय ॥ अ॥ कॉन्फैन्स का स्वर्ण महोत्सव, भायखाला उजवाय । सान्निध्य वल्लभ सूरीश्वर का, सफल श्रेय मिल पाय ॥१॥ मध्यम वर्ग के दुख ददी की, चर्चा आप सुनाय । रोटी, रोजी, शिक्षण औषध, इनको दो हुलसाय ॥२॥
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