Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga
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( ७२ ) सम्प्रदाय सब जैन के, संगठन हितकार । महावीर के पुत्र सभी, राखो सद्व्यवहार ॥ क्षमत क्षामना करते हैं, अन्तिम अवसर जान ।
सूरि समुद्र को सौंपते, पट्टधर का सन्मान ॥ (चाल—ऐवा मुनिवर क्यांथी मल से श्री गुरू अातम राम रे) पूजो वल्लभ सूरीश्वर ने, भविजन भाव उदारी रे । तत्व बोध जिन आगम धारी, विकथा कषाय निवारी रे ||
विक्रम चन्द रवि भू कर में, बम्बई नगर मझारी रे । संघ सकल को देत देशना, अन्तिम काल विचारी रे ॥२॥ अर्हन् अर्हन् शब्द उच्चारे, गुरु अनशन मन धारी रे । आसोज वदी इग्यारस दिवसे, स्वर्ग विमान विहारी रे ॥२॥ स्वर्ग समय में इन्द्र को आसन, थर थर कंपे भारो रे । इन्द्र धनुष गगन में देखा, बम्बई नगरी सारी रे ॥३॥ देव देवी मिल घण्ट बजायो, सुनते सब नर नारी रे। मरीन ड्राइव गूंज उठी थी, ध्वनी निकसी सारी रे ॥४॥ हा ! हा ! कार भयो जिन शासन, उठ गयो मति श्रुत धारी रे । जय जय नन्दा ! जय जय भदा ! बोले सब नर नारो रे ||शा बैकुण्ठी भी खूब सजायी, देव विमान सी सारी रे। लाखों नर नारी मिल करते, ओच्छब निर्वाण भारी रे ॥६ हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, भक्ति करत अपारी रे । पारसी, जैनी, आर्य समाजी, चरणन् पर बलिहारी रे ॥७॥
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