Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga

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Page 102
________________ कॉन्फ्रेंस श्वेताम्बर का, अधिवेशन इक थाय । कस्तुर भाई सेठ वहाँ. उद्घाटन कर नार ॥ कांति ईश्वर प्रमुख था, फालना में उजवाय । सान्निध्य वल्लभ सूरि का, नव जीवन दे पाय || सात क्षेत्र का पोषक है, श्रावक श्राविका आज । हो प्रथम मजबूत ये, फरमावे गुरु राज ॥ देव द्रव्य सद्वय करो, जीर्णोद्धार के काज । सद्गुरु देते प्रेरणा, शासन हित के काज ॥ दहा नाम गुलाबचन्द, संघ जयपुर से लाय । दानी सोहन दूगड़ भी, गुरू का दर्शन पाय ॥ दूगड़ मन भक्ति जगी, देख गुरू का प्रभाव । शिक्षण हित सहयोग दे, दानी दान स्वभाव ।। मूलचन्दजी छज्जूमल, सभापति पद पाय । तन मन धन सहयोग दे, वरकाणा हित दाय ॥ बक्सी कीर्तिलालजी, पालनपुर मोझार । नास्तिक से आस्तिक बना, चमत्कार श्रीकार || (चाल-पूजन कीजो जी नर-नारी गुरू महाराज का हो पूजन कीजो जी तुम भवियाँ गुरु महाराज का हो || अ॥ शत्रुजय डंगर पर देहरी, आतम की मनोहारी। प्रतिष्ठा हो सप्त धातु की, प्रतिमा आनन्द कारी ॥१॥ पालीताना विराजित साधु, एकत्रित जब थावे । संगठन साधन के हेतु, आपस में बतलावे ॥२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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