Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga
View full book text
________________
प्ररक मालेर कोटला का, डिग्री कॉलेज बन जावे। रतनशाह जैन पंजाबी, कामना पूर्ण कर पावे ॥६॥ महेन्द्र मस्त सामाना, गुरु महिमा के गुण गावे। नाजरचन्द दास है तेरा, शायरी भक्त कर पावे ॥७॥ मरूधर भ्रात पंजाबी, संक्रांति श्रवण जब आवे। कल्याणक दिन जिनेश्वर का, आराधो आप फरमावे ॥णा कपूरशाह और दिवानचन्द, सेवा कर धन्य कहलावे। गुरु चरणों की सेवा से, परम आनन्द मन पावे ॥९॥ विजयकुमार अम्बाला, गुरु का दास बन जावे । करे भक्ति स्वधर्मी की, केन्द्र उद्योग विकसावे ॥१०॥ आतम वल्लभ गुरु पूजत, धीर समुद्र समथावे । ऋषभचन्द दास सद्गुरू का, पूजत मन हर्ष नहिं मावे ॥११॥
य
॥
: दोहा : वरकाणा विद्यालय, पार्श्व प्रभु की छाँय । कॉलेज जैन का फालना, खबर लेवे गुरूआय ॥ सुन्दर शिक्षण व्यवस्था, अध्ययन लगन अपार । पूजा सामायिक करे, प्रभु किर्तन करनार ॥ देव धर्म गुरु श्रद्धालु, विद्यार्थी समुदाय । निरखत हर्षित होत है, विजयवल्लभ सूरिराय ॥ सम्पतराजजी भणशाली, सच्चा भक्त कहाय.! वरकाणा जीवन सौंपा, शिक्षण के हितदाय ॥
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com