Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga
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( २१ ) अभिप्राय पर आये हैं कि जो धार्मिक कार्यों के मुहूर्तादि का समय बराबर पालन करना हो, तिथि को लेकर अनेक्य दूर करना हो तो प्रत्येक फिरके को यह पंचांग मान्य रखना चाहिए जो ऐसा होगा तो अपने सहकार और संगठन की दिशा में एक अति महत्व का कदम उठाया है ऐसा समझा जायेगा। __ जैन धर्म की अहिंसा तथा अनेकान्त और अपरिग्रह का सिद्धान्त समम्त विश्व में पण्डितों द्वारा प्रचार करने के लिये
आपने जैन के समस्त समुदायों को प्रभु महावीर के झण्डे के नीचे एकत्रित होकर जैन विश्व विद्यालय स्थापना करने का सन्देश दिवा और इसके लिए जैनों के चार मुख्य सम्प्रदायों के आगेबानों की एक समिति भी बनबाई।
आपके रग-रग में, वाक्य-वाक्य में शान्ति, अनुकम्पा, प्रेम, समभाव का दिव्य सन्देश बहता था।
विश्व की सभी भाषाओं में जैन ग्रन्थों के प्रकाशन करने हेतु कार्यकर्ताओं को प्रेरणा पूर्वक सन्देश दिया।
राज्यकरण में रस लेकर राज्यकर्ताओं को धर्म का सन्देश अन्तिम समय तक समझाते-समझाते परम गुरु भक्त शान्तमूर्ती जैनाचार्य श्री श्री १००८ श्रीमद् विजय समुद्र सूरीश्वरजी को अपना पाट सौंप कर अर्हन्-अर्हन् शब्दों के उच्चारण के साथ विक्रम सं० २०११ की आसोज वदी इग्यारस को प्रातः दो बजकर बतीस मिनिट पर इस नश्वर देह का त्याग कर स्वर्ग सिधारे। __ शासन देव ! हम सबको उनके पचिह्नों पर चलने की शक्ति प्राप्त करने में पूर्ण सहायक हो-यही अभिलाषा है।
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