Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga
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दादा प्रभावक सूरि की, पूजा अष्ट प्रकार । प्रेरक वल्लभ सूरि थे, ऋषभ रचना कार ॥ खान साहब अफर खान, अभिनन्दन कर पाय । जन्म सुधारे स्वयं का, गुरु भक्ति मन लाय ॥ कुंवर सेन मुनि मानते, भक्ति लगन अपार ।
राम गुरू भक्ति करे, कवि काव्य कर नार ॥ ( चाल-जिन मत का डंका आलम में वजवा दिया शिवपुर वाले ने ).
जिन धर्म का झण्डा लहराया, प्रभावक वल्लभ सूरि ने। जिन धर्म सनातन दीपाया, प्रभावक वल्लभ सूरि ने ॥ अ॥ दुगड़ इक दीनानाथ हुए, ज्योतिष विद्या प्रवीण भये । चौधरी पद पर प्रसिद्ध किये, प्रभावक वल्लभ सूरि ने ॥१॥ स्वर्गारोहण आतम गुरू का, शताब्दि अर्द्ध मनाया था। गुजरांवाला पंजाब में जा, प्रभावक वल्लभ सूरि ने ||२|| दुगड़ रघुवीर सु गुण गाता, भक्ति ज्ञानचंद सुकर पाता। उन दोनों के शिर हाथ धरा, प्रभावक वल्लभ सूरि ने ॥३॥ राय कोट प्रतिष्ठा उत्सव था, मंदिर पूजक अति बनपाये । कई अन्य मति को बोध दिया, प्रभावक वल्लभ सूरि ने ॥४॥ श्यालकोट प्रतिष्ठा करवाया, संघ अंजन शलाका भरवाया। तस मुक्ति मंदिर नाम धरा, प्रभावक वल्लभ सूरि ने ॥५ जब देश विभाजन होया था, दुष्टों ने गुरू पर बम फेंका। उनको भी ठंडागार किया, प्रभावक वल्लभ सूरि ने ॥६॥
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