Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga
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मनोहारी रे ||७||
छोटेलाल शाह दूगड़ को श्रद्धा अनुपम त्हारी । संक्रांति को सफल मनावे, चमत्कार थयो भारी रे ॥५॥ सद्गुरू बीकानेर पधारे, स्वागत मंगलाचारी । नव दरवाजा खूब सजाया, राज्य लवाजम भारी रे ||६|| चैत्री ओली दिक्षा उत्सव, प्रतिष्ठा शुभकारी । तप गच्छ दादा बाड़ी होवे, गुरू मन्दिर प्रेरणा साध्वी वसंत श्री की कहता न कोचर मण्डली भक्ति करती, सद्गुरू गुण गानारी रे ||5|| दादा साहब सूरित्रय की पूजा अष्ट प्रकारी । दास ऋषभ रचना कर गावे, प्रेरणा सद्गुरु म्हारी रे ||९|| धूम करे निशि दिन यति गण, अभिमानी शिथिलाचारी । पाखण्ड मद उनका चूरा था, वल्लभ सूरि ब्रह्मचारो रे ||१०|| बीकानेर की राणी विदुषी, भेजे भेंट तिहारी ।
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साधु आचार के विरुद्ध बताकर, भेंट नहीं स्वीकारी रे ||११|| वल्लभ हीरक जन्म महोत्सव ठाठ हुआ था मारी । भूल नहीं सकते उस दिन को, निकली प्रभु की सवारी रे ||१२|| चौक सतावीस घूमे सवारी, आनन्द मंगलकारी । सम्मलित होवे शिष्यों के संग, वल्लभ सूरि उपकारी रे ||१३|| महाराणी की विनती पाकर, देशना कौनी जारी।
आवे पारी ।
गंगा थियेटर प्रजा मिनिष्टर, जय जय शब्द उच्चारी रे ||१४|| रामपुरिया जावंत भंवर ने, गुरुं की सेवा धारी । प्रतिज्ञा मेघराज सुराणा, सफल करे अवतारो रे ॥१६ ॥१
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