Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga
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मंत्र काला गुरू अतिशय धारी, अनेक लब्धि भण्डारी। रामरतन कोचर की साहेब, विपदा दूर निवारी रे ॥१७॥ आतम वल्लभ सूरि समुद्र, ऋषभ प्राणाधारो। विजय वल्लभ सूरि पूजत भावे, सुख सम्पति अधिकारी रे ||१८||
: दोहा :
कोचर लक्ष्मी प्रसन्न चंद, छोटू बैद कहाय । सुराणा रूप चंद भी, श्रद्धा फूल चढ़ाय ॥ दानवीर भैरू पूनम, कोठारो कहलाय । वल्लभ को कर वंदना आनन्द हर्ष मनाय ॥ झाबक मंगल फूलचंद भक्तिकर सुख पाय । करनावट सोहन तेरो, साचो भक्त कहाय ॥ बंशी रोशन वृजलाल, गुरू चरणों में जाय । भक्त वत्सल कृपा करी, विपदा दूर हटाय ॥ चौरासी गच्छ मानते, शासन थंभ कहाय । सम्प्रदाय सब जैन के, वल्लभ के गुण गाय ॥ धन्नी बाई श्राविका, श्रद्धा का नहीं पार | शिक्षण हित सहयोग दे, भाग्यवती सद्नार ।। लूणकरणसर गाँव में चुन्नी जागीरदार । दारू मांस को त्यागता, गुरु भक्ति करनार ।। फाजिलका बंगला बने, जिन मन्दिर सुखकार । प्रतिष्ठा सद्गुरू करे, आनन्द हर्ष अपार ॥
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