Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga

View full book text
Previous | Next

Page 94
________________ ( ५८ ) फूलचन्दजी श्यामजी, सच्चा भक्त तिहार । मोहन मगन श्रद्धालु, गुरू भक्ति कर नार ॥ कांती ईश्वर दानी जो, करे सखावत सार । पुस्तकालय कॉलेज का, उद्घाटन कर नार ॥ वल्लभ भाषण प्रतिभा पर, भवि लक्ष्मी वर्षाय । ज्ञान मन्दिर हेम सूरिका, पाटण में बन जाय ॥ मन्दिर पूजक नये बने, वहाँ मन्दिर बनवाय । प्राचीन मन्दिर जहाँ खड़े, जीर्णोद्धार कराय ।। शासन दीपक सूरि पुंगव, समाज काज सुधार । जगह जगह गुरू मन्दिर का, गुरू स्थापन कर नार ॥ (चाल-- मान माया ना कर नारा रे चाल-सूरि राय पूजन सुखकारी रे खेमटा) वल्लभ सूरि उपकारी रे भवि पूजो सुभाव मन धारी || अ॥ धर्म आराधन करे करावे, जिन वचन अनुसारी । आप तरे भवि जन को तारे, सौम्य मूर्ति मनोहारी रे ॥१॥ ज्ञान सुहंकर चिद्घन संगी, जगजीवन हितकारी। स्वामी बोधानन्द सूरि का, बनता चरण पूजारों रें |२|| जगह जगह वाचनालय स्थापा, महिमा ज्ञान प्रचारी। पुरुषोत्तम सुरचंद सद्गुरु के, चरण न पर बलिहारी रे ||३|| दारू मांस का त्याग कराया, जिनकी गिनती अपारी। लब्बूराम. श्रावक पद पावे जैन धर्म अंगीकारी रे॥8: Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126