Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga

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Page 61
________________ विजयानन्द | प्रणमुं गोडी पार्श्व ने, प्रणमुं गुरु विजयवल्लभ सूरि नमुं, नमुं समुद्र सूरींद ॥ सिमरु माता सरस्वती, महर करो तुम आज । पूजा रच, गुरूदेव की, भवोदधि तरवा काज ॥ वर्द्धमान जिनराज का, पाट दीपा वन हार । कोटिक गण वज्रीशाखा, चांद्र कुल परिवार ॥ बड़ गच्छ समुदाय में, संविग्न आद्याचार्य । आम्बिल को तप आदर्यो, जग्गचंद्र सूरि राय ।। ८ २ १ विक्रम ईशु वशु कर शशी, नृप चितोड़ समक्ष । तपस्या से तपा विरुद्, प्रसिद्ध तपा गच्छ ॥ ताके पाट परम्परा, दादा प्रभावकाचार्य | नवयुग प्रवर्तक भये. ज्ञान ज्योति प्रगटाय ॥ चिक्कागो अमेरिका, सर्व धर्मं परिषद् । न्ययाम्भो निधि मानती, सूरि विजयानन्द || तस पट्टधर जग में हुए, युग प्रधान कल्पतरू कलिकाल के विश्व वत्सल तरणि तिमिर अज्ञान के, सूरि सम्राट सुखदाय । महाराय ॥ सुहाय । कहाय ॥ सूरिराय । । रंग लगाय ॥ www.umaragyanbhandar.com राट् भारत दीवाकर प्रभु, मरूधर केसरी था पंजाब का, विजय वल्लभ मणीभद्र सेवा करे, भक्ति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat

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