Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga

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Page 86
________________ परमेष्ठिपद में मध्य पद के, धारकम् भव . तारकम् । गुरूदेव वल्लभ सूरि पूजन, सर्व विघ्न निवारकम् ।। ( मन्त्रः ) ॐ ह्रीं श्रीं परम गुरुदेव परम शासन मन्य सूरि सार्वभौम ज० यु० प्र० भट्टारक जैनाचार्य श्री श्री १००८ श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर चरण कमलेम्यो, धूपं यजामहे स्वाहा ॥४॥ ॥ अथ पांचवीं दीपक पूजा ॥ : दोहा : दीपक पूजा पांचवीं पंचमी गति दातार । वल्लभ गुरु के पूजतां, वर्ते जय जयकार ॥ वसु ऋषि निधि शशि वर्ष को, बीकानेर में आय । पौषधशाला विराजता, चारमास सुखदाय ॥ जयंति श्री जगद्गुरु, धूमधाम हो पाय । प्रारंभ किनी आपने, भारत भर में थाय ॥ सम्यग्य दर्शन ज्ञान की, पूजा रचना सुहाय। धारण खादी अंग में, शुद्ध वस्त्र अपनाय॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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