Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga
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पैदल सफर केशरिया बाना, उपदेशक मति वारा। पतितों का उत्थान किया था, करुणा रस भण्डारा रे॥ आहोर ठाकुर पुत्र कुमार ने, भक्ति हृदय में धारा। दारू मांस का भक्षण त्यागा, अपना जीवन सुधारा रे ॥६|| महाराणा भूपाल सिंह ने, राज महल सत्कारा । गुलाब बाग व्याख्यान कराकर, जय जय शब्द उच्चारा रै ॥७॥ नबाब मालेर कोटला गुरू के चरण कमल पुजारा । धर्मलाभ आशिष थावे, सुख सम्पत्ति अधिकारा रे ॥ पालनपुर नबाब साहब ने, गुरू आज्ञा शिर धारा । गुरु भक्ति से लाभ उठायो, अन्न धन लक्ष्मी सारा रे ॥९॥ पालीताना ठाकुर साहब का, भक्ति भाव उदारा । गुरु वल्लभ का स्वागत करते, आनन्द मंगल कारा रे ॥१०॥ पटियाला नाभा के नरेश ने, गुरु की सेवा धारा । गुरु वल्लभ की भक्ति करता, अपना काज सुधारा रे ॥११॥ पट्टधारी गच्छ थंभ आचारज, युग प्रवर सुख कारा । दया दान शिक्षा उपदेशक, जीव परम उपकारा रे ॥१२॥ फलौदी से संघ चला इक. जेशलमेर मझारा। ज्ञान सुन्दर अरू पांच वैद्य की, भक्ति का नहीं पारा रे ॥१३॥ जेशलमेर जवाहर सिंहजी, भक्ति हृदय में धारा । राज महल में स्वागत करते, महिमा खूब प्रचारा रे ॥१४॥ पोरवाल जाति का सम्मेलन, आप सफल कर नारा । अज्ञान तिमिर तरणि पद पावे, जगमें जय जयकारा रे ॥१५॥
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