Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga

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Page 84
________________ ( ४८ ) हीर विजय सूरि सोम सुन्दर, विजयानन्द सूरि राय ।' प्रतिष्ठा त्रय मूर्ति, पालनपुर सुखदाय || जैन विद्यालय कोष हो, शिक्षण के हितकार | धन्य धन्य वल्लभ गुरु, जग बोले जयकार | (चाल-मंगल पूजा सुर तस्कंद) वल्लभ गुरु पूजो भवि वृन्द ||| बीजापुर मारग में डाकू, जंगल में उत्पात करंद । क्षमाशील साधुगुण पूरे, सहन करे परिषह आनन्द ॥१॥ सुराणा सुमेरमल को भक्ति का नहीं पार लहंद । कलकत्ता से देखन आवे, सुखसाता में है मुनिचंद ॥२॥ जगह जगह के श्रावक आवे तार पत्र की धूम मचंद । झवेर चंदादि श्री संघ की, सेवा का नहीं पार लहंद ॥३॥ दो तड़ में गुरु सम्प कराई शिक्षा का उपदेश करंद । पाठशाला स्थापित वहाँ होवे, जनता पावे परमानंद ||४|| मरुधर देश उधारण कारज, सादड़ी आन रुके मुनिवृंद। जैन श्वेताम्बर कांफ्रेंस का, अधिवेशन वहाँ सफल फलंद ॥ बाली में दो भवि दीक्षित हो, पन्यास सोहन साथ पूरंद । .ललित उमंग विद्यामुनि तोनों, पद पन्यास शोभे सुखकंद ॥६॥ छरि पालता संघ चतुविध, केसरिया जा हर्ष अमंद । गोमाजी संघवी पद पावे, शिवगंज वासी लाभ लहंद ||७|| जैन विद्यालय गोड़वाड़ को, मदद दिलावे सद्गुरु वृंद । संघवीजी दश हजार. देवे, हेतु विद्यालय विकषंद | Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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