Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga
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( ४५ ) दीक्षितकर सुखराज को, दियो समुद्र तस नाम । मंत्री बन सुशोभता, पट्टधर *रिम ललाम || मोयांगांव जा पहुंचते, झगड़ा आप मिटाय । पाठशाला चाल करी, लाभ कपासी पाय ॥ ऋषि मंडल की पूजना, द्वीप नंदीश्वर साथ । पाठक वोर को प्रेरणा, मालवा श्री संघ साथ ॥ माँसाहारी तजे माँस को, सुखाड़ा ग्राम मोझार । होवे उपदेश आपका, बोले जय जयकार ॥ सीतर गाँव के पंच भी, पूजे गुरु का पाय । बणछारा में आनकर कन्या बिक्री उठाय ॥ मुसलमान तजे मांस को, सिनोर के नर नार। संयम तप अरु त्याग का, चमत्कार श्री कार ॥ कोरल के स्थानकमती, संविग्न रंग रंगाय । गुरु कृपा उन पर हुई, जीवन हो सुखदाय ॥ . (चाल—नाथ कैसे गज को फंद छुड़ायो) सुगुरु तेरो पूजन अति सुखदायो ॥ अ॥ विजयानन्द सूरि संघाड़ा, मुनि सम्मेलन थायो । प्रेरक मुनि वल्लभ विजय का, अद्भुत तेज सवायो ॥१॥ सर्व सम्मति से चार बोस, प्रस्ताव पास करायो। गायकवाड़ बड़ौदा नगरी, शासन मान बढ़ायो ॥ २ ॥ पाठक वीर विजय कमल सूरि हंस विजय मुनिरायो।
कांति विजय प्रवर्तक संपत, पन्यास मन हुलसायो || ३H • आकर्षित
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