Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga
View full book text
________________
( २७ )
बालावय वैरागी जीवन, संयम भाव विचारा रे । परम गीतारथ सद् गुरू भेटया, आतमानन्द सुखारा रे ||५|| छगन अर्ज करे सद्गुरू ने, तेरा एक सहारा रे । साचो धन मुनि पद मुझ देओ, मिटे भ्रमण संसारा रे ॥६॥ आज्ञा लाओ खोमचंद की, जो बड़े भ्रात तिहारा रे । छाने छिपके करू न दीक्षित, जिन शासन अनुसारा रे ||७|| विनय विवेकी भाई छान, गुरु आज्ञा शिर धारा रे । जप तप निश दिन करता भ्राता, खीमचंद मन हारा रे ||5||
४ ९ १
विक्रम वेद कषाय निधि शशि, राधनपुर स्थल सारा रे । सुदी तेरस वैशाख सुमासे, चारित्र पद अवधारा रे ||९|| - वासक्षेप विजयानन्द सूरि, देते मंत्र उच्चारा रे । मम लक्ष्मी तस शिष्य हर्ष का शिष्य मुनि मनोहारा रे ||१०|| मम वल्लभ श्री संघ को वल्लभ, वल्लभ हर्ष को सारा रे । विजय करण विजय पद देऊ, नाम वल्लभ विजय त्हारा रे ||११|| जय हो वल्लभ विजय तुम्हारी, बोले श्री संघ सारा रे । आतम वल्लभ सूरि समुद्र, ऋषभ प्राणाधारा रे ||१२|| : atat :
अहिंसा सच बोलना, चोरी का परिहार । ब्रह्मचर्य अपरिग्रह, पांच महाव्रत धार || दश विध यति धर्म शोभता, संजम सत्रह प्रकार । सता वीश गुण साधु के, शोभा का नहीं पार |
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com