Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga
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( ३२ ) मारवाड़ पाली शहर, नवलखा पारस नाथ । जिन मंदिर उत्सव हुओ, धूम धाम के साथ ॥
६.-४ ९ १ रस युग निधि शशि वर्ष की, सुदी वैशाख सुमास । दशमी दिन दीक्षा बड़ो, वल्लभ मन उल्लास ॥ ( तर्ज-अाशावरी, चाल-वल्लभ आतम के पट्टधारी)
भवि कर गुरु पूजन सुखकारो || विजयानन्द जोधाणे पधारे, वल्लभ पाली मझारी । वैयावच्च गुरू हर्ष की करते, चार मास सुखकारी ॥ १॥ कल्प सूत्र सुबोधिका टीका, आत्म प्रबोध सुखारी । चन्द्रिका भी पूरण कीनी, अध्ययन लगन अपारी ॥ २॥ अमरकोष को कण्ठ लगायो, ज्योतिष विद्या सारी। त्रिजो चर्तुमास पूरण कर, अजमेर गये अणगारी ॥ ३ ॥ विजयानन्द भी आन पधारे, ओच्छब अठ दिन भारी। समवसरण की रचना सुन्दर, आतम आनन्द कारी ॥ ४ ॥ जयपुर हो दिल्ली को पधारे, पाँच महाव्रत धारी । विजयानन्द पंजाब को जाते, बोले वचन उच्चारी ॥ ५ ॥ हर्ष विजय को सेवा निश दिन, वल्लभ रखना जारी । जब तक तबियत ठीक न होवे, रहना स्थिरता धारी ॥ ६॥ वैद्य हकीम अनेक ही आये, प्रयत्न करी गये हारी। तूटी की बूटी नहीं होवे, कर्मन की गति न्यारी ॥ ७ ॥
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