Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga

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Page 71
________________ : दोहा : अभिधान चिन्तामणि अरु, न्याय कियो अभ्यास । हरि भद्र टीका रचित, दशवैकालिक खास ।। आचार प्रदीप पठन किया, व्याख्यान शैलीधार । दृष्टांतो समालोचना, तात्विक चर्चा सार ॥ रूचिकर शैली अति घनी, तर्क बुद्धि भी जास । वल्लभ ने धारण किया, विजयानन्द के पास ॥ पट्टी अमृतसर मला, अम्बाला सुखकार । चर्तुमास पूरण किया, तीन वर्ष जयकार || न्याय बोधिनी चन्द्रोदय, सम्यक्त्व सप्ततीसार । तीन ग्रन्थ अध्ययन किये, मन शक्ति दृढ़ धार । प्रतिष्ठा क्रिया विधि, समझी सविस्तार । अमृतसर अरनाथ की, जग बोले जयकार ।। चन्द्रप्रभा व्याकरण करो, ज्योतिष विद्या सार । आवश्यक आगम पढ़ा, वल्लभ लगन अपार ।। विक्रम वसु युग अंक रवि, वदि कार्तिक शुभ मास । वल्लभ को चेला दिया, गुरु आतम ने खास ।। नाम विवेक विजय मुनि, रक्खा आतम जास । प्रथम शिष्य के लाभ पर, भवि जन मन उल्लास ॥ अंजन शलाका प्रतिष्ठा, जीरा नगर में थाय । सानिध्य आतम राम के, विधि वल्लभ कर पाय ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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