Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga

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Page 72
________________ ( राग-माढ़-चाल-विमला चल धारा) भवि जन मन प्यारा, दुःख हरनारा, गुरुवल्लम भगवान । जग तारण हारा, जग जयकारा, गुरुवल्लभ भगवान |||| स्वर्ण मन्दिर होशियारपुर का, है प्रसिद्ध जग नाम । प्रतिष्ठा विधि वल्लभ करता, प्रेरक आतम राम रे ॥१॥ वीरचन्द राघवजी गाँधी, अमरीका जानार । चिक्कागो सर्व धर्म परिषद् में, जिन वचन कहनार रे ||२|| निबन्ध आतमराम का था, वल्लम लेखनकार । पद्धति व्यवहार दक्षता, परिचय का पानार रे ॥३॥ सतलज नदी किनारे दादा, मंत्र दियो शुभकार । क्रान्ति और शान्ति दोनों ही, वल्लभ मन अवधार रे ॥४॥ स्थापन जग में सरस्वती मन्दिर, करना पर उपकार । धार्मिक संग व्यवहारिक शिक्षण, जग जीवन हितकार रे || संघ चतुर्विध मध्य इक है, साध्वियाँ समुदाय । शिक्षण इनका सुन्दर होवे, शासन के हितदाय रे ॥६| शिरिव बाण निधि सूर्य वर्षे, गुजरांवाला आन । आतमराम खमावे सब को, अन्तिम अवसर जान रे ॥७॥ पंजाब श्रीसंघ चिन्ता करता, तुम सम कौन जहान् । अन्त समय तक निकसी वाणी, वल्लभ मम सम मान रे ॥॥ जेठ सुदी अष्टमी दिन दादा, पायो स्वर्ग विमान । शासन का झण्डा कर लेकर, वल्लभ पावे मान रे ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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