Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga

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Page 73
________________ ( ३७ ) चन्दन पूजत सद्गुरू अंगे, यश सुगन्ध अपार । आतम वल्लभ सूरि समुद्र, ऋषभ प्राणाधार रे ||१०|| काव्यम् भवि जीव बोधक, तत्व शोधक, जिन मताम्बुज भास्करम् । वल्लभ, जगत् वल्लभ विजय युग प्रधान परमेष्ठि पद में मध्य पद के, गुरुदेव वल्लभ धारकम् भव सूरि पूजन, विघ्न सर्व सूरीश्वरम् ॥ तारकम् । सद्गुरु अंगे पूजतां, फले Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat निवारकम् ॥ ( मन्त्र : ) शासन मान्य, ॐ ह्रीं श्रीं परम गुरूदेव, परम सूरि सार्वभौम जं० यु० प्र० भट्टारक जैनाचार्य श्री श्री १००८ श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर, कमलेभ्यो चंदनं यजामहे स्वाहा ||२|| चरण ॥ अथ तृतीय पुष्प पूजा ॥ : दोहा : पांच वर्ण के फूल जो, महके अति ही सुवास । मनोरथ आश ॥ www.umaragyanbhandar.com

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