Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga
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( ४१ ) ईर्षालु ईर्षा करे, दीक्षा रोकन काज । पुण्य प्रबल वल्लभ का, सुधरे सारे काज ॥ सम्प कराया पीपलीया, कीना फूट का नाश ! संवेगी स्थानकमति, बने गुरु के दास ॥ (चाल-उमराव थाँरी बोली प्यारी लागे महाराज ) गुरुराज थारी पूजा प्ारी लागे महाराज । महाराज जी हो......गुरुराज || अ ॥ पालनपुर गुजरात के, प्रथम प्रवेश का द्वार । सामैया उमंग से, वल्लम की जयकार ॥ १ ॥ फूट पड़ी तड़ दो हुए, ओसवाल श्रीमाल । संप करे वल्लभ मुनि, तप गच्छ हो खुशहाल |॥ २॥ गोदड़शाह भक्ति करे, धर्मशाला बढ़वाय । लाभ जान गुरुदेव जो, चर्तुमास फरमाय ॥ ३ ॥ आतम वल्लभ केलवणो, फंड स्थापित करपाय ।. अर्द्ध लाख का कोष भो, वहाँ एकत्रित थाय ॥ ४ ॥ भंवरसिंह कलकत्ता का, चारित्र पदवी पाय । विचक्षण विजय मुनि, नाम गुरु दे पाय ॥ ५ ॥ धन्य घड़ी वह शुभ दिवस, पालनपुर के मांय । मित्र विजय दीक्षित हुए आनन्द हर्ष मनाय ॥ ६ ॥ पालनपुर नबाब को, भक्ति भाव अपार । वासक्षेप को डालते, मुख बोले जयकार ॥ ७ ॥
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