Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga

View full book text
Previous | Next

Page 69
________________ 2 ९ १ विहरण भारी । ऋषि युग निधि रवि, चैत्र मास को सुदी दशमो दुखियारो । हर्षविजय मुनि स्वग सिधारे, गुरू विरह सह्यो भारो ॥ ८ ॥ पंच नदी गति सम यह मुनिवर करते आतम राम का दर्शन पाकर वल्लभ आतम वल्लभ सूरि समुद्र, ऋषभ प्राणाधारी । जल पूजा वल्लभ गुरु देव की, विमल भाव गुणकारी ॥ १० ॥ ॥ काव्यं ॥ हर्ष अपारी ॥ ९ ॥ ( ३३ ) भवि जीव बोधक, तत्व शोधक, जगत् वल्लभ जिन मताम्बुज भास्करम् विजय वल्लभ, युग प्रधान परमेष्ठि पद में मध्य पद के. भव गुरूदेव वल्लभ धारकम् सूरि सर्व विघ्न पूजन. सूरीश्वरम् ॥ तारकम् । निवारकम् ॥ ( मन्त्रः ) ॐ ह्रीं श्रीं परम गुरुदेव, परम शासन मान्य, सूरि सार्वभौम, जं० यु० प्र० भट्टारक जैनाचार्य, श्री श्री १००८ श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर, चरण कमलेभ्यो, जलं यजामहे स्वाहा ॥ १ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126