Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga
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विहरण भारी ।
ऋषि युग निधि रवि, चैत्र मास को सुदी दशमो दुखियारो । हर्षविजय मुनि स्वग सिधारे, गुरू विरह सह्यो भारो ॥ ८ ॥ पंच नदी गति सम यह मुनिवर करते आतम राम का दर्शन पाकर वल्लभ आतम वल्लभ सूरि समुद्र, ऋषभ प्राणाधारी । जल पूजा वल्लभ गुरु देव की, विमल भाव गुणकारी ॥ १० ॥ ॥ काव्यं ॥
हर्ष अपारी ॥ ९ ॥
( ३३ )
भवि जीव बोधक, तत्व शोधक,
जगत् वल्लभ
जिन मताम्बुज भास्करम्
विजय
वल्लभ,
युग
प्रधान
परमेष्ठि पद में मध्य पद के.
भव
गुरूदेव वल्लभ
धारकम्
सूरि सर्व विघ्न
पूजन.
सूरीश्वरम् ॥
तारकम् ।
निवारकम् ॥
( मन्त्रः )
ॐ ह्रीं श्रीं परम गुरुदेव, परम शासन मान्य, सूरि सार्वभौम, जं० यु० प्र० भट्टारक जैनाचार्य, श्री श्री १००८ श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर, चरण कमलेभ्यो, जलं यजामहे स्वाहा ॥ १ ॥
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