Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga
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से अधिक ग्रहण नहीं करते थे। प्रत्येक अष्टमी व चतुदशी को उपवास रहता था। पूर्णिमा, अमावस्या को छोड़ कर शेष महत्वपूर्ण तिथियों को एकासना किया करते थे। शरीर कारण के सिवाय पोरसी तो नित्य ही करते थे।
अनेक श्रावकों के पास खाने को अन्न और पहनने को वस्त्र न देख कर आपके नेत्र सजल हो उठते थे। ऐसे अनेक श्रावकों को दुःखी देखकर आपने स्वधर्मी सेवा का प्रबल उपदेश स्थान स्थान पर दिया।
वे कहने लगे कि श्रावक-श्राविका क्षेत्र मजबूत नहीं होगा तो सातों क्षेत्र किस प्रकार मजबूत रह सकेंगे ? इसलिये समाज में कोई भी भाई अन्न, वस्त्र तथा जीवन की प्राथमिक आवश्यकताओं से वंचित न रहे। अतः स्वधर्मी बन्धुओं को उद्योग-धन्धों में लगाकर स्वाश्रयी बनाने के लिये आपने लाखों रुपयों का कोष एकत्रित कराकर उद्योग मन्दिरों की स्थापना करवाई जिससे आज भी लगभग चालीस उद्योग केन्द्र चल रहे हैं। तथा विद्यार्थियों को स्कोलरसिप देकर उनके शिक्षण के लिए संस्थायें कार्य कर रही हैं।
स्त्री शिक्षा पर बल देकर अनेक बालिका विद्यालयों की स्थापना कराई तथा जो लोग साध्वियों के व्याखानों का विरोध कर धर्म प्रचार में बाधक बन रहे थे उनके मिथ्या भ्रम का निवारण कर साध्वियों को जगह-जगह व्याख्यान देने का प्रोत्साहन देकर धर्म प्रचार के कार्य कराये जिसके फलस्वरूप Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com