Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga
View full book text
________________
कराया जाने लगा जिससे आपको हर प्रकार की पद्धतियों का रचनात्मक ज्ञान प्राप्त हो ।
विक्रम सम्वत् १६४६ को वैषाख शुक्ला दशमी को पाली (मारवाड़) में पूज्य श्री विजयानन्द सूरीश्वर जी ( आत्माराम जी) महाराज ने आप को अपने कर कमलों द्वारा बड़ी दीक्षा प्रदान की। उसके पूर्व आप पालनपुर में सात नवीन साधुओं को अध्ययन कराया करते थे। यही आपकी योग्यता एवं प्रभावशीलता का द्योतक था ।
आपकी बड़ी दीक्षा तो हो गयी पर अब क्या करना ? प्रभु महावीर के बताये धर्म शास्त्रों का गहरा अध्ययन कर मुक्ति की प्राप्ति किस प्रकार करनी तथा जगत् के जीवों को मुक्ति के मार्ग की ओर किस प्रकार ले जाना—इसकी खोज एवं निर्णय कर गुरु की सेवा, गुरु का विनय, भांति भाँति के जैन-जनेतर शास्त्रों का अध्ययन मनन और चिन्तन कर अनेक प्रामों के भिन्न भिन्न व्यक्तियों के साथ प्रेरक, वार्तालाप कर आप श्री महान् बुद्धिशाली बने।
गुरु मुनि श्री हर्षविजयजी महाराज की आप सेवा बहुत करते थे परन्तु 'तूटी की बूटी नहीं कहावत के अनुसार विक्रमः सम्वत् १९४७ की चैत्र शुक्ला दशमी को मुनि श्री हर्षविजयजी महाराज देहली शहर में काल-धर्म प्राप्त हो गये। तत्पश्चात आप पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज की शरण में पंजाब पहुंच गये।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com