Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga

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Page 50
________________ ( १६ ) आपके कंधों पर जिम्मेदारी का भार भी कम न था, संस्थाओं को हर सम्भव सहायता पहुंचाना आपका मुख्य मन्त्र था। इतना होते हुए भी अनेक पुस्तकें लिखने, भक्तिमार्ग के काव्य की रचनायें करने के साथ साथ शिष्यों प्रशिष्यों को शिक्षण देने में सदैव तत्पर रहते थे। __ प्रभु की सवारी जो कई वर्षों से सतावीस मोहल्लों में निकलनी बन्द थी, वह बीकानेर के समस्त मोहल्लों में गाजे बाजे के साथ घूमी, उसका समस्त श्रेय आपकी प्रभावकता को था। बीकानेर की विदूषी महारानी के निवेदन को मान देकर गंगाथियेटर हॉल में धर्म के तत्वों का मर्म समझाया जिससे आकर्षित होकर वीकानेर की महाराणी साहिबा ने आपके ७५ वें जन्म दिवस पर इक्वीस रुपये और श्रीफल आपको भेट भेजा परन्तु साधु आचार के विपरीत बताकर वापिस लौटा दिया। पाँच सौ पंचेन्द्रिय जीवों को अभयदान दिलवाया तथा बीकानेर महाराजा ने आपकी यादगार में शिवबाड़ी के बगीचे का नाम वल्लभ गार्डन रखा । ____ अठाई महोत्सव, उपाध्ययन तप, छ' री, पालते संघ आदि अनेक धार्मिक अनुष्ठानों को उपदेश देकर करवाये तथा भव्य जीवों को धर्म मार्ग में लगाकर उनकी आत्मा का उद्धार किया। जहाँ पर मन्दिर पूजा करनेवाले श्रावक बनाये वहाँ पर नूतन मंदिरों की स्थापना करवाई तथा जहाँ पर मन्दिर थे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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