Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga

View full book text
Previous | Next

Page 39
________________ ( ५ ) अपनी मान्यताओं का समर्थन किया, उपदेश देकर सैकड़ों वर्षों से अन्धकार में पड़े हुए ग्रन्थ रत्नों को प्रकाश की किरणों से आलोकित किया । लोकभाषा हिन्दी में साहित्य के प्रकाशन को प्रोत्साहन देकर हमारी आत्मा को प्रकाश दिखाया और अपनी अपूर्व काव्य शक्ति द्वारा लोगों को भक्ति मार्ग की ओर आकर्षित किया। अपने त्याग, संयम, तपस्या के बल पर विद्यालय - कालेज - गुरुकुल आदि के स्थापन का उपदेश देकर ज्ञान का प्रचार किया, अपने अगाध परिश्रम से अनेक विद्वानों को उत्पन्न किया और प्राणीमात्र के प्रति समभाव रखकर मुख्यतः मध्यम वर्ग को ऊँचा उठाने में भरसक प्रयत्न किया । आपने साम्प्रदायिकता से परे रहकर समस्त जैन एक मात्र प्रभु श्री महावीर के झण्डे के नीचे एकत्रित होवे, ऐसा उपदेश दिया और जिनकी पूर्ण कृपा से मेरे जैसे अनेक लेखकों ने साहित्य क्षेत्र में प्रवेश किया। ऐसे युग महापुरुष का जन्म विक्रम संवत् १६२७ की कार्तिक शुक्ला २ (भाईदूज ) बुद्धवार के दिन भारत अन्तर्गत महागुजरात प्रान्त की राजधानी सम्मान बड़ौदा शहर में सुख सम्पन्न बीसा श्रीमाल श्रावककुल भूषण श्री जैन श्वेताम्बर मंदिर आम्नाय सेठ श्री दीपचंदजी के घर सती शिरोमणि माता इच्छाबाई की कुक्षि से पुत्र रत्न के रूप में हुआ | आपका नाम छगनलाल रखा गया । माता के गर्भ में जब आप अवतरित हुए तब स्वप्न में माता ने आपको तीर्थ कर के चरणों में समर्पण कर दिया था Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126