Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga
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में गुण- ग्राहक होने के नाते आपने इतर दर्शनों के प्रति जो सहिष्णुता दिखलाई वह आपके महान् संत होने की परम्परा को अक्षुण्ण बनाने वाली है। आपकी नीति समन्वयवादी रही है । "आपका धर्म वही है जो आत्मा को पतन से उठावे" इत्यादि युक्तियाँ जो आपने कही हैं, वे आपकी महत्ता की प्रतीक हैं ।
आपका जीवन बहुत सादा रहा है। खादी के वस्त्र पहनना, बहुत कम वस्त्र रखना इत्यादि इसके सूचक हैं । इन सब गुणों के साथ-साथ ही आप चरित्र के भी महान् धनी रहे हैं। जिसके कारण आपके शरीर में ओज टपकता था | मंद मुस्कान भरा आपका चेहरा अन्त समय में भी नहीं कुमलाया - यह आपके अदम्य उत्साह का सूचक था । ऐसे आत्मनिष्ठ बाल ब्रह्मचारी, तेजस्वी, पूज्य युग प्रवर का जितना गुण गाया जाय वह थोड़ा है ।
ऐसे ही महान् तपःपूत श्रद्धेय आचार्यवर की जीवन-रेखा पर श्री डागाजी ने जो कुछ लिखा है, वह उनकी कृपा का प्रसाद हो है । किन्तु ऐसे महात्माओं का कृपापात्र बनना भी कोई कम महत्त्व की बात नहीं । अतः डागाजी को यह सौभाग्य मिला - यह परम हर्ष एवं उत्साह का विषय है ।
श्री डागा जी की कई रचनाएँ देखने को मिली हैं, उनसे ज्ञात होता है कि ये लेखनी के धनी हैं, भाषा की सरलता के साथ-साथ भाव का प्रवाह भी इनका बहुत सुन्दर बनपड़ा है । इनकी रचनाओं में कृत्रिमता नहीं है किन्तु स्वाभाविकता व
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