Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga
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( ज ) हो गई। इन्होंने जीवन में स्वावलम्बन के साथ सादगी को भी स्थान दिया। धर्म-भावना के अलावा मानव समाज एवं राष्ट्र के उत्थान में भी समय-समय पर सहयोग दिया। फलतः पण्डित श्री मोतीलाल नेहरू, पण्डित श्री मदनमोहन मालवीय व अन्यान्य राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त व्यक्ति भी उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहे । ऐसे युग प्रवर, धर्म-सेनानी, त्यागी, तपस्वी एवं मनस्वी महामना के जीवन आदर्श पर जो कुछ लिखा जाये, वह कोई कम सौभाग्य का विषय नहीं है।
आप संस्कृत, प्राकृत आदि अनेक भाषाओं के गहरे विद्वान् थे। आपकी ज्ञान साधना उच्चकोटि की थी। धर्म-दर्शन के साथ-साथ ज्योतिष, न्याय, व्याकरण, साहित्य आदि अन्यान्य विषयों पर भी आपका अपना पूर्ण अधिकार था। आप विषय के पूर्ण विवेचक थे । आपके ओजस्वी व मधुर उपदेश श्रोताओं को मन्त्र मुग्ध कर देते थे। वाणी में निष्कपटता व सरलता ऐसी कूट-कूट कर भरी थी जो कि श्रोता को मोहित किये बिना म रहती। आप गुजरात के होते हुए भी राष्ट्र-भाषा हिन्दी से बड़ा प्रेम रखते थे। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण है कि आपके उपदेशों का संकलन हिन्दी में होता था और आप अपने पार्श्ववर्ती लेखकों, कवियों, गायकों और उपदेशकों को हिन्दी भाषा की ओर अग्रसर होने का अपना मनोभाव देते तथा ऐसी ही भावना अन्य जनमानस में भी भरते । जैन दर्शन के विकास में आपका सराहनीय सहयोग सो रहा ही किन्तु साथ
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