Book Title: Yugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Author(s): Rushabhchand Daga
Publisher: Rushabhchand Daga

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Page 11
________________ *x* एक दृष्टि विश्व अनादि एवं अजस्र बहने वाला एक नित्य स्रोत है । यहाँ प्रवृति और निवृति- इन दोनों की धारा में बहने वाला मनुष्य का जीवन है । किन्तु निवृति का संबल पाकर प्रवृति से उन्मुख होना मनुष्य का अपना परम ध्येय होता है । जहाँ उसे आत्मानंद का ही कोरा अनुभव नहीं होता किन्तु चिदानन्द का भी । यह उद्बोधन देने वाली परम्परा एक भारतीय आर्ष परम्परा है । जो कि समय के साथ अबाध गति से चलती आ रही है और आगे भी चलेगी। ऐसी ही पुनीत परम्परा के समुज्ज्वल कर्णधार हैं-युगप्रवर आचार्य श्री विजयवल्लभ सुरि । इन्होंने बाल्यावस्था से ही ज्ञान और कर्म की साधना पाई. वह चिर स्मरणीय ही नहीं है अपितु विश्व के हर कोने में अनुकरणीय भी है। ये गुजरात में जन्मे। छोटी अवस्था में ही एक जैन साधु बने । एक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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