Book Title: Vyavahar Sutram Part 06
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat

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Page 422
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री व्यवहार सूत्रम् दशम उद्देशकः १६८२ (A) www.kobatirth.org तथा अनागाढपरितापने एकाशनम्, आगाढपरितापने आचाम्लम्, अपद्रावणे क्षपणमिति ॥ ४५२० ॥ Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir पञ्चेन्द्रियाणां घट्टने एकाशनकम् १, अनागाढपरितापने आचाम्लम् २, आगांढपरितापने क्षपणम् अभक्तार्थम् ३, अपद्रावणे पञ्च कल्याणं निर्विकृतिक- पूर्वार्द्ध एकाशनकाऽऽचाम्लक्षपणरूपम् ॥ ४५२१ ॥ एमाईओ एसो, नायव्वो होड़ जीयववहारो । आयरियपरंपरएण आगतो जो वा जस्स भवे ॥ ४५२२ ॥ [तुला-जी.भा.६८६] एवमादिक एष जीतव्यवहारो भवति ज्ञातव्यः । यो वा यस्य आचार्यपरम्परकेणाऽऽगतः स तस्य जीतव्यवहारो ज्ञातव्यः ॥ ४५२२ ॥ बहुसो बहुस्सुएहिं, जो वत्तो न य निवारितो होइ । वत्तऽणुवत्त प्रमाणं, जीएण कयं भवति एयं यो व्यवहारो बहुश्रुतैः बहुशः अनेकवारं वृत्तः प्रवर्त्तित:, न चान्यैर्बहुश्रुतैः भवति विद्यते ॥ ४५२३ ॥ For Private And Personal गाथा ४५२२-४५३० सावद्या सावद्यजीतम् १६८२ (A)

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