Book Title: Vyavahar Sutram Part 06
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat

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Page 448
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्री व्यवहार-1 सूत्रम् दशम उद्देशकः १६९५ (A) यो दशविधस्य वैयावृत्यस्य वक्ष्यमाणस्यान्यतरस्मिन् वैयावृत्त्ये प्रियधर्मतया क्षिप्रमुद्यमं करोति, केवलमदृढधर्मतया अत्यन्तमनिर्वाही तस्मिन् धृति-वीर्यकृशे प्रथमभङ्गः १ ॥ ४५६८॥ दुक्खेण व गाहिजइ, बितितो गहियं तु नेइ जा तीरं २ । उभयतो कल्लाणो, तइओ३ चरिमो अ पडिकुट्ठो ४ ॥ ४५६९॥ द्वितीयस्तु नो प्रियधर्मत्वाद् दुःखेन महता कष्टेन प्रथमतो वैयावृत्त्यं ग्राह्यते, गृहीतं तु | यावत् प्रतिज्ञायास्तीरं तावन्नयति २। उभयतः कल्याणस्तृतीयः ३। चरमः न प्रियधर्मा नापि दृढधर्म इत्येवंरूपो गच्छे प्रतिक्रुष्टः निराकृतः ॥ ४५६९ ।। सूत्रम्- चत्तारि आयरिया पन्नत्ता । तं जहा-पव्वावणायरिए नामं एगे | नोवट्ठावणायरिए १ उवट्ठावणायरिए नामं एगे नो पव्वावणायरिए २ एगे पव्वावणायरिए | वि उवट्ठावणायरिए वि३, एगे नो पव्वावणायरिए नो उवट्ठावणायरिए ॥ १२॥ अस्य सम्बन्धमाह | सूत्र ११-१२ गाथा ४५६५-४५७३ प्रियधर्मदृढधर्मस्वरूपम् N |१६९५ (A) For Private And Personal

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