Book Title: Vyavahar Sutram Part 06
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat

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Page 475
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्री व्यवहारसूत्रम् दशम उद्देशकः १७०८ (B)| मासतुसानाएणं, दुम्मेहतमं पि केइ इच्छंति । तं न भवति पलिमंथो, ण या वि चरणं विणा नाणं ॥ ४६२०॥ केचिद् माषतुषज्ञातेन दुर्मेधसमपि दीक्षितुमिच्छन्ति, तन्न भवति, यतो दुर्मेधसः पाठने |* स्वयं सूत्रार्थयोः पलिमन्थः न चापि तस्य ज्ञानं विना चरणम्, ततः आत्मनः परस्य च केवलक्लेशान्न तद्दीक्षणमिति ॥ ४६२०॥ नातिथल्लं न उझंति, मेहावी जो अ बोब्बडो । जलमूगमेलमूगं च, परिट्ठावेज दोन्नि वि ॥ ४६२१॥ नातिस्थूलं नोज्झन्ति, दीक्षयन्तीत्यर्थः । यश्च मेधावी बोब्बडो भाषाजड्डमपि नोज्झन्ति। सूत्र १८-१९ जलमूकमेलकमूकं द्वावप्येतौ परिष्ठापयेत् न दीक्षयेत् ॥ ४६२१ ॥ ४६१८-४६२६ मोत्तूण करणजटुं, परियटुंति जाव सेस छम्मासा । क्षुल्लकदीक्षा एक्कक्कं छम्मासा, जस्स व दड़े विविंचणया ॥ ४६२२॥ ११७०८ (B) मुक्त्वा करणजड्डु शेष दुर्मेधसं भाषाजड्डु यावत् षण्मासास्तावत् परिवर्त्तवन्ति | गाथा For Private And Personal

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