Book Title: Vyavahar Sutram Part 06
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat
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श्री
व्यवहार-1 सूत्रम् दशम उद्देशकः | १७०८ (A)
दुम्मेहमणतिसेसी, न जाणती जो य करणतो जड्डो । ते दुन्नि वि तेण उ सो, दिक्खेइ सिया उ अतिसेसी ॥ ४६१८॥
दुर्मेधसं यश्च करणतो जड्डुस्तम् अनतिशेषी अनतिशायी न जानाति तेन कारणेन तौ द्वावपि स दीक्षयेत्। अथ स्यात् सोऽतिशेषी ततो न दीक्षयति ॥ ४६१८ ॥
अहव न भासाजहुं, जहाति तिपरंपरागयं छउमो । इयरं पि देसहिंडग, असतीए वा विगिंचेजा ॥ ४६१९ ॥
अथवा भाषाजडं दुर्मेधसं त्रिपरम्परागतं मातृपक्षपरम्परागतं [पितृपक्षपरम्परागतं] गुरुपक्षपरम्परागतं च छद्मस्थो न त्यजति । इतरमपि करणज९ देशहिण्डकस्य देशदर्शनाय असति चान्यस्मिन् साधौ दीक्षयेत्। अन्यथा विवेचयेत् न दीक्षयेत्, दीक्षितं वा परिष्ठापयेत् ॥ ४६१९ ॥
अत्रैव मतान्तरं दूषयति
सूत्र १८-१९ | गाथा ४६१८-४६२६ | क्षुल्लकदीक्षा
|१७०८ (A)
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