Book Title: Vyavahar Sutram Part 06
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat
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श्री
व्यवहार
सूत्रम् दशम उद्देशकः
१७०३ (A)
*
एवं चक्खुंदिय-घाणेदिय-जिब्भिंदिओवघाएहिं । एक्केक्कगहाणीए, जाव उ एगिंदिया नेया ॥ ४५९७॥
एवम् एकैकहान्या एकैकेन्द्रियपरिहानितः चक्षुरिन्द्रिय-घ्राणेन्द्रिय-जिह्वेन्द्रियोपघातैः क्रमेण त्रीन्द्रियादयस्तावद् ज्ञेया यावदेकेन्द्रियाः । तद्यथा- चक्षुरिन्द्रियोपघाते त्रीन्द्रियाः, घ्राणेन्द्रियोपघाते द्वीन्द्रियाः, जिह्वेन्द्रियोपघाते एकेन्द्रियाः ॥ ४५९७ ॥ ____ इह पूर्वं विज्ञानावरणेऽपीन्द्रियमनावृतमुक्तम्। इदानीमिन्द्रियावरणेऽपि विज्ञानमनावृतमुपदर्शयति
सन्निस्सिंदियघाए वि, तन्नाणं नाऽऽवरिज्जए । विन्नाणं नत्थऽसन्नीणं, विजमाणे वि इंदिए ॥ ४५९८ ॥
संज्ञिन इन्द्रियघातेऽपि तज्ज्ञानम् उपहतेन्द्रियज्ञानं नाऽऽवियते । एतच्चाग्रे भावयिष्यते। असंज्ञिनां पुनर्विद्यमानेऽपीन्द्रिये विज्ञानं नास्ति, यथोक्तं प्राक् यथा चाग्रे वक्ष्यते ॥ ४५९८॥
एतदेव भावयति
गाथा ४४५९३-४६००
आवरणभेदाः
१७०३ (A)
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