Book Title: Vyavahar Sutram Part 06
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat

View full book text
Previous | Next

Page 467
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्री व्यवहारसूत्रम् दशम उद्देशकः १७०४ (B) परिणामतो जं भणितं, जिणेहि अह कारणं न याणामि । दिटुंते परिणामण, परिवाडी उक्कम-कमाणं ॥ ४६०३॥ अथ यदुक्तं जिनैः परिणामतः संसारिणामिन्द्रियविभागस्तत्र कारणं न जानामि। एवं * तेनोक्ते दृष्टान्तेन परिणामनमधिकृत्य क्वचिदुत्क्रमपरिपाटी वक्तव्या ॥ ४६०३ ॥ एतदेव | सविस्तरं भावयति चरिएण कप्पिएण व, दिटुंतेणं तहा तयं अत्थं । उवणेइ जहा णु परो, पत्तियइ अजोग्गरूवं पि ॥ ४६०४॥ चरितेन कल्पितेन वा दृष्टान्तेन तथा तं विवक्षितमर्थमुपनयति यथा परो | अयोग्यरूपमपि प्रत्येति ॥ ४६०४ ।। ४४६०१-४६०८ चरितकल्पितदिटुंता परिणामे, कहिजते उक्कमेण वि कयाइ । दृष्टान्तादिः जह ऊ एगिंदीणं, वणस्सई कत्थई पुव्वं ॥ ४६०५॥ १७०४ (B) १. णामेण-ला.॥ गाथा For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512