Book Title: Vishwajyoti Mahavira
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 16
________________ आनन्द का अक्षय स्रोत कराता है । अध्यात्म का आरम्भ स्व को जानने और पाने की बहुत गहरी जिज्ञासा से होता है, और अन्ततः स्व के पूर्ण बोध में, 'स्व की पूर्ण उपलब्धि में इसकी परिसमाप्ति है। अध्यात्म किसी विशिष्ट पंथ या संप्रदाय की मान्यताओं में विवेकशून्य अंधविश्वास और उनका अन्धअनुसरण नहीं है । दो-चार पाँच परंपरागत नीति नियमों का पालन अध्यात्म नहीं है, क्योंकि यह अमुक क्रियाकाण्डों की, अमुक विधिनिषेधों की कोई प्रदर्शनी नहीं है और न यह कोई देश, धर्म और समाज की देश-कालानुसार बदलती रहने वाली व्यवस्था का कोई रूप है । यह एक आन्तरिक प्रयोग है, जो जीवन को सच्चे एवं अविनाशी सहज आनन्द से भर देता है । यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जो जीवनको शुभाशुभ के बन्धनों से मुक्त कर देती है, स्व की शक्ति को विघटित होने से बचाती है । अध्यात्म जीवन की अशुभ शक्तियों को शुद्ध स्थिति में रूपान्तरित करने वाला अमोघ रसायन है, अतः यह अन्तर की प्रसुप्त विशुद्ध शक्तियों को प्रबुद्ध करने का एक सफल आयाम है । अध्यात्म का उद्देश्य औचित्य की स्थापना मात्र नहीं है, प्रत्युत शाश्वत एवं शुद्ध जीवन के अनन्त सत्य को प्रकट करना है । अध्यात्म कोरा स्वप्निल आदर्श नहीं है । यह तो जीवन का वह जीता जागता यथार्थ है, जो स्व को स्व' पर केन्द्रित करने का, निज को निज में समाहित करने का पथ प्रशस्त करता है । . . . Jain Education International 7 - अध्यात्म को धर्म से अलग स्थिति इसलिए दी गई है कि आज का धर्म कोरा व्यवहार बन कर रह गया है, बाह्याचार के जंगल में भटक गया है, जबकि अध्यात्म अब भी अपने निश्चय के अर्थ पर समारूढ़ है । व्यवहार बहिर्मुख होता है और निश्चय अन्तर्मुख । अन्तर्मुख अर्थात् स्वाभिमुख । अध्यात्म का सर्वेसर्वा स्व है चैतन्य है । परम चैतन्य के शुद्ध स्वरूप की ज्ञप्ति और प्राप्ति ही अध्यात्म का मूल उद्देश्य है । अतएव अध्यात्म जीवन की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भावात्मक स्थिति है, निषेधात्मक नहीं । परिभाषा की संक्षिप्त भाषा में कहा जाए तो अध्यात्म जीवन के स्थायी मूल्य की ओर दिशासूचन करने 1 I For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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