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विश्वज्योति महावीर इतिहास के पृष्ठों पर ऐसे गिने-चुने विरले ही वीर होते हैं, जो ऐसा बलिदान करते हैं । सत्य के शोधक महावीर ऐसे ही तेजस्वी.वीर पुरुष थे । तीस वर्ष की मदभरी जवानी में, जब किसी तरुण की आँख भाग्य से ही खुली मिल सकती है, ऐश्वर्य और रागरंग के स्वर्ण सिंहासन छोड़ देना कोई हँसी
खेल नहीं है। अन्दर के सत्य की आवाज जब किसी को कुछ करने के लिए पुकारने लगती है, तो ये पारिवारिक दायित्व आदि के छोटे-मोटे गणित कुछ -~काम नहीं करते हैं । इधर-उधर के राग से उभरे आँसू और तीखी आलोचनाओं
से जलते-भुनते वचन, सत्य के सच्चे शोधक को गन्तव्य से रोक नहीं पाते हैं. ऐसे अवसरों पर प्रायः पारिवारिक तथा सामाजिक दायित्वों की अवहेलना होती ही है, परम्परागत मर्यादाओं की दीवारें टूटती ही हैं । महावीर भी इसके अपवाद नहीं थे। उनके अन्तर में सत्य की वह ज्वाला जगी कि, उसमें उनके अपने वैयक्तिक सुखोपभोग एवं पारिवारिक मोह ममत्व सब जलकर भस्म हो गए और वे चल पड़े मस्ती से झूमते, सत्य का तराना गाते साधना के अग्निपथ पर ।
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