________________ भगवान महावीर की आठअमर शिक्षाएँ * पहले कभी नहीं सुने गए पवित्रधर्म (धर्म-प्रवचन) को सुनने के लिए तत्पर रहो। * सुने हए धर्म का आचरण करने को तत्पर रहो। संयमसाधना के द्वारा नये पाप कर्मों का निरोध करने में तत्पर रहो। तप:साधना के द्वारा पुराने सचित पाप-कर्मों को नष्ट करने में तत्पर रहो। अनाश्रित एवं असहायजनों को सहयोग एवं आश्रय देने में तत्पर रहो। शैक्ष (नये शिक्षार्थी) को सदाचार का उचित मार्ग-दर्शन करने में तत्पर रहो। दीन-दुखी, रोगियों की सेवा करने के लिए सदा प्रसन्नभाव से तत्पर रहो। यदि अपने सहधर्मी बन्धुओं में किसी कारण मतभेद, कलह, विग्रह आदि उत्पन्न हो गया हो, तो उसे शांत कर परस्पर सद्भावना बढ़ाने में सदा तत्पर रहो। स्थानांग सूत्र, अष्ठम स्थान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org