Book Title: Vishwajyoti Mahavira
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 96
________________ महावीर के अमर उपदेश .87 ३७. सोही उज्जुअभूयस्स, धम्मो सुद्धस्स चिट्ठई। -उत्तराध्ययन ३।१२ ऋजु अर्थात् सरल आत्मा की विशुद्धि होती है और विशुद्ध आत्मा में ही धर्म ठहरता है। ३८ भिक्खाए वा गिहत्थे वा, सुव्वए कम्मई दिवं । -उत्तराध्ययन ५।३३ भिक्षु हो, चाहे गृहस्थ हो, जो सुव्रती (सदाचारी) है, वह दिव्यगति को प्राप्त होता है। ३९. परिजूरइ ते सरीरयं केसा पंडुरया हवन्ति ते । से सव्वबले य हायई, समयं गोयम ! मा पमायए ।. __-उत्तराध्ययन १०।२६ तेरा शरीर जीर्ण होता जा रहा है, केश पक कर सफेद हो चले हैं । शरीर का सब बल क्षीण होता जा रहा है, अतएव हे गौतम ! क्षण भर के लिए भी प्रमाद न कर । ४०. अह पचहिं ठाणेहिं जेहिं सिक्खा न लब्भइ । थंभा कोहा पमाएणं रोगेणालस्सएण वा ॥ - उत्तराध्ययन ११।३ - अहंकार, क्रोध, प्रमाद (विषयासक्ति), रोग और आलस्य-इन पांच कारणोंसे व्यक्ति शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकता । ४१. । न य पावपरिक्खेवी, न य मित्तेसु कुप्पई । अप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे कल्लाण भासई। - उत्तराध्ययन ११।१२ सुशिक्षित व्यक्ति न किसी पर दोषारोपण करता है, और न कभी साथियों पर कुपित ही होता है । और तो क्या, मित्र से मतभेद होने पर भी परोक्ष में उसकी भलाई की ही बात करता है । ४२. जा जा वचई रयणी, न सा पडिनियत्तई । धम्मं च कुणमाणस्स, सफला जन्ति राइओ । -उत्तराध्ययन १४।२५ ___ जो रात्रियां बीत जाती हैं, वे पुनः लौटकर नहीं आतीं । किन्तु जो धर्म का आचरण करता रहता है, उसकी रात्रियां सफल हो जाती हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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