Book Title: Vishwajyoti Mahavira
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 91
________________ 82 ९. १० बहुपि लधुं न निहे, परिग्गहाओ अप्पाणं अवसक्किज्जा । अधिक मिलने पर संग्रह न करो । परिग्रह-वृत्ति से अपने को दूर रखो । ११. बन्धप्पमोक्खो अज्झत्थेव । गुरु से 'कामा, तओ से मारस्स अंतो, जओ से मारस्स अंतो, तओ से दूरे । नेव से अंतो व दूरे । - आचारांग १।५।१ जिसकी कामनाएँ तीव्र होती हैं, वह मृत्यु से ग्रस्त होता है, और जो मृत्यु से ग्रस्त होता है, वह शाश्वत सुख से दूर रहता है । परन्तु जो निष्काम होता है, वह न मृत्यु से ग्रस्त होता है, और न शाश्वत सुख से दूर । १२. तुमंस नाम तं चैव जं हंतव्वं ति मन्नसि । तुमंस नाम तं चेव जं अज्जावेयव्वं ति मन्नसि । विश्वज्योति महावीर - आचारांगा १।२।५. वस्तुतः बन्धन और मोक्ष अन्दर में आत्मा में ही हैं । Jain Education International - आचारांग १।५।२. तुमंसि नाम तं चेव जं परियावेयव्वं ति मन्नसि । - आचारांग १।५।५. जिसे तू मारना चाहता है, वह तू ही है । जिसे तू शासित करना चाहता है, वह तू ही है । जिसे तू परिताप देना चाहता है, वह तू ही है, । (स्वरूप दृष्टि से सब चैतन्य एक समान हैं। यह अद्वैत भावना ही अहिंसा का मूलाधार है ।) For Private & Personal Use Only १३. जे आया से विन्नाया, जे विन्नाया से आया । वियाण से आया । तं पडुच्च पडिसंखाए । - आचारांग १।५।५. आत्मा है, वह विज्ञाता जाननेवाला है । जो विज्ञाता है, वह आत्मा है । जिससे जाना जाता है, वह आत्मा है । जानने की इस शक्ति से ही आत्मा की प्रतीति होती है । www.jainelibrary.org

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