Book Title: Vishwajyoti Mahavira
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 54
________________ 45 अन्तर्मुखी साधनापद्धति करके वृत्तियों को नष्ट नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार वृत्तियों को मुक्त रूप से सन्तुष्ट करके भी उनको नष्ट नहीं किया जा सकता। ' प्रस्तुत सन्दर्भ में महावीर की साधना जिस तरह दमन की साधना नहीं है, उसी तरह भोगविलास के पथ पर वृत्तियों को खुला छोड़ देने की भी उनकी साधना नहीं है । महावीर की साधना का इन दोनों से भिन्न एक और ही अद्भुत रूप है। उसका पथ विवेक का है, चेतना का है । उचित निवृत्ति और उचित प्रवृत्ति, इन दोनों को स्पर्श करता हुआ बीच से पथ जाता है महावीर की साधना का। बाह्य विधिनिषेध अमुक सीमा तक उन्हें मान्य हैं । उनके लिए उपयोगी भी रहे हैं । परन्तु उनका मुख्य साधनापथ बाहर में नहीं, अन्दर में था । वृत्तियों का दमन या शमन नहीं, क्षपण ही उनका आदर्श था । शास्त्र की शुद्ध भाषा में इसे क्षायिक मार्ग कहा जाता है । साधना की क्षायिकपद्धति में वृत्तियों के बीज को देखा और समझा जाता है । उनके कारणों की सही-सही खोज की जाती हैं । उन्हें शून्यांश पर लाने के लिए शुद्ध वैज्ञानिक अध्यात्म पद्धति को उपयोग में लाग जाता है । महावीर की साधना पद्धति यही क्षायिक साधना पद्धति थी, जिसने जीवन की वृत्तियों को, विकृतियों को जड़ से उखाड़ फेंका । वे मूलतः नष्ट हो गई, और इसके फलस्वरूप महावीर अपने चैतन्य तत्त्व के विकास शिखर पर पहुंच गए। वीतरागसाधना का मूलाधार : ध्यान महावीर की साधना, जिसे हम वीतराग साधना कहते हैं, जो वृत्तियों के दमन से या शमन से सम्बन्धित न होकर क्षपण से सम्बन्धित है, अतः वह क्षायिक साधना है । प्रश्न है, उसका मूल आधार क्या है ? वह कैसे एवं किस रूप में की जा सकती है ? उक्त प्रश्न का उत्तर एक ही शब्द में दिया जा सका है, वह शब्द है - ध्यान । महावीर की साधना का आन्तरिक मार्ग यही था । ध्यान के मार्ग १ न यावि भोगा समयं उर्वति । - उत्तराध्ययन ३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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