Book Title: Vishwajyoti Mahavira
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 63
________________ 54 विश्वज्योति महावीर अच्छाइयों का भी विरोध किया हो, उपयोगी व्यवस्थाओं को भी ध्वस्त किया हो । वस्तुतः उनका प्रहार न पुराने पर था, न नये पर । उनका प्रहार असत्य पर था, अनुपयोगी पर था, भले ही वह पुराना रहा हो या नया ! सत्य के दो रूप हैं - एक है शाश्वत सत्य और दूसरा है सामयिक सत्य ! शाश्वत सत्य अनादि-अनन्त है, अतः वह नये पुराने की सीमा से परे होता है । न वह कभी नया होता है, न कभी पुराना । अतः उसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता । परिवर्तन होता है सामयिक सत्य में, क्योंकि वह नये पुराने की परिधि में घिरा रहता है । एक समय का सत्य, दूसरे समय में पुराना पड़ जाता है, अनुपयोगी हो जाता है, अतः वह असत्य हो जाता है । महापुरुष इसी सामयिक सत्य को तोड़कर युगानुरूप नये सामयिक सत्य की स्थापना करते हैं । सामयिक सत्य का ही एक दूसरा रूप है, दैशिक सत्य । एक देश, एक क्षेत्र, एक स्थान में जो सत्य है, वह दूसरे देश, दूसरे क्षेत्र एवं दूसरे स्थान में अपना मूल्य खो देता है । अतः वह परिवर्तित देश-क्षेत्रस्थान में असत्य हो जाता है । महापुरुष इसमें भी देश, क्षेत्र एवं स्थान के अनुसार परिवर्तन करने की सूचना देते हैं । भगवान् महावीर ने शास्वत सत्य में नहीं, सामयिक सत्य में परिवर्तन किया । सामयिक सत्य में भी जो अंश युगानुकूल न होने के कारण अनुपयोगी हो गया था, उसको तोड़ फेंका और उसके स्थान में युगसापेक्ष उपयोगी नये समायिक सत्य की स्थापना की । विश्वहितंकर विराट् आत्माएँ मृत सत्यों को ढोने के लिए नहीं आती । वे आती हैं मृत सत्यों को दफनाकर जीवित सत्यों की प्राण-प्रतिष्ठा करने के लिए । भगवान् महावीर ऐसे ही जीवित सत्य की प्राण-प्रतिष्ठा करने वाले तीर्थंकर थे । मानव : देवों का भी देव _भगवान् महावीर का दर्शन मानव की महत्ता का दर्शन है । वे देववादी नहीं, प्रत्युत मानववादी थे । उनका कहना था कि सदाचारी एवं संयमी मानव देवों से भी ऊँचा है । जो मानव सच्चे मन से धर्माचरण करता है, अपने अन्दर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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