Book Title: Vishwajyoti Mahavira
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

View full book text
Previous | Next

Page 44
________________ दिव्यसाधक जीवन 35 I रहते हैं । असुरक्षा की स्थिति में कभी सुरक्षा का कोई प्रयास नहीं करते । प्राणघातक स्थिति में भी वे स्व की, चैतन्य की अमरता का विश्वास लिए अचल खड़े रहते हैं । उनके जीवन में परस्पर विरोधी स्थिति जैसी कोई वस्तु नहीं है । साध्य के प्रति उनके मन में अटल विश्वास लहरा रहा है । और उसके लिए हर साधन को वे अपने अनुकूल बना लेते हैं, चाहे वह कितना ही प्रतिकूल प्रभंजन लेकर आया हो । जीवन में कुछ ऐसे प्रसंग आते हैं, जब मनुष्य का मन उन्मत्त तूफान के धक्के खाते वृक्ष की तरह लड़खड़ा जाता है, शान्ति खतरे में पड़ जाती है। विवेक का दीप बुझने लगता है । किन्तु महावीर ऐसे प्रसंगों पर भी बोखलाते नहीं हैं, निराश नहीं होते हैं, शिथिल नहीं होते हैं । उनका साधुत्व तेजस्वी है । उनकी साधना का दीप आंधी-तूफानों में भी प्रज्वलित रहता है, बुझता नहीं है । कैसा भी क्यों न ऊँचा-नीचा प्रसंग हो, महावीर कभी भी अपने को गलत आश्वासन नहीं देते । वे अपने मन को फुसलाते नहीं हैं, इसलिए कहीं फिसलते नहीं हैं । प्रत्येक स्थिति का दृढ़ता और विवेक के साथ सूक्ष्म से सूक्ष्म निरीक्षण एवं विश्लेषण करते हैं, और इस प्रकार मुक्त चिन्तन के प्रकाश में प्रयोग की दिशा में आगे बढ़ जाते हैं । I महावीर की साधना सत्य के प्रयोग की साधना है । शरीर की नहीं, आत्मा के सत्य की साधना है । वह साधना, जो साधक को बन्धनमुक्त करती है, सत्य का अनन्त प्रकाश दिखलाती है, और साधक को अनन्त आनन्द की धारा में सदा सर्वदा के लिए प्रवाहित करती है । ☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐AAAA÷☐☐ -> Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98