Book Title: Vishwajyoti Mahavira
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 15
________________ विश्वज्योति महावीर अर्थ विभिन्न संप्रदायों का बाह्याचार सम्बन्धी विधि-निषेध ही रह गया है । धर्म की व्याख्या करते समय प्रायः हर मत और पंथ के लोग अपने परंपरागत विधिनिषेध-सम्बन्धी क्रियाकाण्डों को ही उपस्थित करते हैं और उन्हीं के आधार पर अपना श्रेष्ठत्व प्रस्थापित करते हैं । इसका यह अर्थ है कि धर्म अपने व्यापक अर्थ को खोकर केवल एक क्षरणशील संकुचित अर्थ में आबद्ध हो गया है । अतः आज के मनीषी धर्म से अभिप्राय -मत पंथों के अमुक बँधेबँधाये आचार विचार लेते हैं, इससे अधिक कुछ नहीं । दर्शन का अर्थ तत्त्वों की मीमांसा एवं विवेचना है । दर्शन का क्षेत्र है - सत्य का परीक्षण | जीव और जगत् एक गूढ पहेली है, इस पहेली को सुलझाना ही दर्शन का कार्य है । दर्शन प्रकृति और पुरुष, लोक और परलोक, आत्मा और परमात्मा, दृष्ट और अदृष्ट, · मैं :: यह और · वह आदि रहस्यों का उद्घाटन करने वाला है । वह सत्य और तथ्य का सही मूल्यांकन करता है । दर्शन वह दिव्य-चक्षु है, जो इधर उधर की नई पुरानी मान्यताओं के सघन आवरणों को भेदकर सत्य के मूलरूप का साक्षात्कार कराता है । दर्शन के बिना धर्म अन्धा है । अन्धा गन्तव्य पर पहुंचे तो कैसे पहुँचे ? पथ के टेढ़े-मेढ़े घुमाव, गहरे गर्त और आस-पास के खतरनाक झाड़-झंखाड़ बीच में कहीं भी अन्धे यात्री को निगल सकते हैं। अध्यात्म, जो बहुत प्राचीन काल में धर्म का ही एक आन्तरिक अंग था, जीवनविशुद्धि का सर्वाङ्गीण रूप है । अध्यात्म मानव की अनुभूति के मूल आधार को खोजता है, उसका परिशोधन एवं परिष्कार करता है । स्व. जो कि स्वयं से विस्मृत है, अध्यात्म इस विस्मरण को तोड़ता है । स्व. जो स्वयं ही अपने स्व के अज्ञानतमस का शरणस्थल बन गया है, अध्यात्म इस अन्धतमस् को ध्वस्त करता है, स्वरूप स्मृति की दिव्यज्योति जलाता है । अध्यात्म अन्दर में सोये हुए ईश्वरत्व को जगाता है, उसे प्रकाश में लाता है । राग, द्वेष, काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह के आवरणों की गंदी परतों को हटाकर साधक को उसके अपने शुद्ध स्व तक पहुंचाता है, उसे अपना अन्तर्दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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