Book Title: Vishwajyoti Mahavira
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 23
________________ 14 विश्वज्योति महावीर थोथे हैं, कितने उथले हुए हैं, यह हर कोई प्रबुद्ध मनीषी समझ सकता है । कुछ क्षणों के भौतिक विश्राम तात्कालिक दुःखों से मुक्ति के वास्तविक साधन कुछ और ही हैं। जीवन महत्त्वपूर्ण है । उसका कोई विशिष्ट प्रयोजन है । यह यों ही बेबस जन्म-जरा-मरण के, आधि-व्याधि के दुःखों और कष्टों में नष्ट होने के लिए नहीं है और न भोग-वासना की दुर्घन्धभरी अंधेरी गलियों में भटकने के लिए ही है । उसका कोई महान् उद्देश्य है । उसकी सम्प्राप्ति के बिना जीवन अर्थहीन है । विकृतियों के कीड़ों-से कुलबुलाताजीवन भी क्या जीवन ? जीवन की निर्विकार पवित्रता एवं अनन्त सत्य की उपलब्धि ही जीवन का महान् उद्देश्य है, एक मात्र लक्ष्य है । उसकी पूर्ति का मार्गखोजना प्रबुद्धचेतनाशील साधक के लिए अनिवार्य है । महावीर के अन्तर्मन में उसी की तीव्र अभीप्सा थी । महावीर के अन्तर्मन में उसे प्राप्त करने के लिए सब कुछ स्वाहा कर देने की तत्परता मचल रही थी। महावीर को लग रहा था, जो जीवन में स्थायी एवं निर्विकार आनन्द नहीं दे सकते, उन साधनों के साथ आँख बन्द कर भागते रहने का आखिर क्या अर्थ है? जिनके बहुत गहरे अन्दर में परम सत्य एवं परम आनन्द को प्राप्त करने की तीव्रतम अभीप्सा जागृत हो जाती है, उन्हें ऊपरी सुख-सुविधाएँ सन्तुष्ट भी तो नहीं कर सकती । परिवार के रागात्मक हाव-भाव, आर्थिक समृद्धि एवं भोगविलास के मुक्तसाधनजीवन का अन्तरंग समाधान देने में समर्थनहीं हैं । लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में यदि किसी जीवन की गति नहीं है तो वह जीवन एक भटका हुआ आवारा जीवन है । लक्ष्यहीनता के कारण जीव खण्ड-खण्ड-में विभक्त हो जाता है । निरुद्देश्यता, अन्ततोगत्वा निरर्थकता को, भटकाव को जन्म देती है। महावीर के चिन्तन में यह स्थिति स्पष्ट थी। __ स्व की उपलब्धि और स्वनिष्ठ आनंद की खोज ही महावीर के चिन्तन का उद्देश्य था । यही एक प्रेरणा थी जो उन्हें अपना चलता आया जीवन-पथ बदलने के लिए विवश कर रही थी । यह प्रेरणा उन्हें किसी दूसरे से, तथाकथित किसी धर्मोपदेशक से नहीं मिली । उन्हें किसी ने प्रेरित एवं निर्देशित नहीं किया। यह प्रेरणा उनके स्वयं के अन्दर की गहराई से उद्भूत थी । महावीर की यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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